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नज़्म
तमाशा इक अजब सा एक दिन यूँ राह में देखा
किसी को देखते हैं लोग इक मजमा इकट्ठा है
सय्यद हशमत सुहैल
नज़्म
मौलवी जन्नत में पहोंचे तो अजब थे सिलसिले
नाश्ते में सुब्ह को बस चाय और पापय मिले
सय्यद हशमत सुहैल
नज़्म
मुसलमाँ क़र्ज़ ले कर ईद का सामाँ ख़रीदेंगे
जो दाना हैं वो बेचेंगे जो हैं नादाँ ख़रीदेंगे
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
न पूछ ऐ हम-नशीं कॉलेज में आ कर हम ने क्या देखा
ज़मीं बदली हुई देखी फ़लक बदला हुआ देखा
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
लो ईद आई लो दो पुलिए मैदान में भर बाज़ार लगा
हर चाहत का सामान हुआ हर ने'मत का अम्बार लगा
सय्यद ज़मीर जाफ़री
नज़्म
जब ख़त में तुम लिख देती हो कुछ हाल अपनी बीमारी का
मैं बैठ के तन्हाई में जाने क्या क्या सोचा करता हूँ
सय्यद एहतिशाम हुसैन
नज़्म
सिगरेट ने ये इक पान के बीड़े से कहा
तू हमेशा से परी-रूयों के झुरमुट में रहा